मंगलवार, 1 नवंबर 2011

जन-स्वास्थ्य के संदर्भ में स्वास्थ्य प्रोन्नति और रोगों की रोकथाम में आयुष की भूमिका


पिछले २०-30 वर्षों में योग , आयुर्वेद , प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर बहस- मुबाहिसे होते रहे हैं . प्रासंगिकता और महत्व पर शक -सुबहा भी होता रहा है . लेकिन बिना पर्याप्त शोध किये खारिज करने की प्रवृति कहा तक सही है ! लेकिन शोध -अनुसन्धान बताते हैं कि इन चीजों का अत्यंत महत्व है .
आयुर्वेद विश्व का प्राचीनतम जीवन-स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शास्त्र है। इसकी उत्पत्ति वेदों से है। आयुर्वेद आयु का विज्ञान है। जीवन का विज्ञान । जीवन की रचना और आयुष का विज्ञान । शरीर-इन्द्रिय-सत्त्व-आत्मा के संयोग को आयु कहते हैं- शरीरेन्द्रिय सत्वात्म संयोगो धरि जीवितम्। आयुर्वेद नित्य एवं शाश्वत है -शाश्वतोअयं आयुर्वेद:। कतिपय आचार्यों ने आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद कहा है। कई आचार्य आयुर्वेद को पंचम वेद मानते हैं। आयुर्वेदीय संहिताओं में वैदिक विचार से सर्वथा भिन्न अनेक विचार तथा सिद्धान्त हैं। आयुर्वेद के मूलभूत त्रिदोष सिद्धान्त अर्थात् वात-पित्त-कफ की अवधारणा मौलिक अवधारणा है जिसका वैदिक वांग्मय में उल्लेख नहीं मिलता। आयुर्वेदीय संहिता काल तक तथा तदनन्तर आयुर्वेद क्रमश: विकसित होता एक संपूर्ण स्वास्थ्य व चिकित्सा विज्ञाान का स्वरूप धारण करता गया। आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा सहित वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की गुणवत्ता व समृद्ध परंपरा पर प्रस्तुत है दो दिवसीय कांफ्रेंस की डॉ. सरताज अहमद की एक रिपोर्ट -

डॉ.सरताज अहमद

                                             इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेन्टिव सोशल एंड मेडिसिन की उ.प्र-उत्तराखंड स्टेट चैप्टर की १४ वीं वार्षिक कांफे्रंस का दो दिवसीय आयोजन बीते १४-१५ अक्टूबर स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलिज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के तत्वावधान में संपन्न हुआ।
जन-स्वास्थ्य के संदर्भ में स्वास्थ्य प्रोन्नति और रोगों की रोकथाम में आयुष की भूमिका विषयक कंाफे्रंस का उद्देश्य आधुनिक एवं परंपरागत चिकित्सा प्रणाली पर हुए शोध कार्यों का ज्ञान अर्जन करने की सतत प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने तथा योग-आयुर्वेद का आधुनिक चिकित्सा पद्धति में परस्पर सामंजस्य होने की जानकारी प्राप्त करना था। कांफे्रंस में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशेषज्ञों एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों ने स्वास्थ्य लाभ पाने के महत्वपूर्ण तथ्यों पर सुचिंतित विमर्श किया।



उद्घाटन वक्तव्य में मुख्य अतिथि एसवीवाईएएसए विश्वविद्यालय बंगलुरू के कुलपति डॉ. एच. आर. नगेन्द्रा ने कहा कि बीमारियों के बढऩे का कारण ग्लोबल वार्मिंग, सामाजिक परिस्थितियां और जीवन-शैली में हो रहे परिवर्तन हैं। फलस्वरूप श्वसन रोग, हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप, मोटापा और मधुमेह जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में केवल एलौपैथी पर निर्भर रहना उचित नहीं। जरूरत है लोगों को निरोगी बनाने के लिए उपलब्ध सभी मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्रणालियों का सहयोग लिया जाए। विदेशों में भी भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन और महत्व बढ़ा है।

विशिष्ट अतिथि मणिपाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रसिद्ध विद्वान डॉ. बी. एम. हेगड़े ने अपने रोचक और सुचिंतित व्याख्यान में कहा कि विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों द्वारा रोगों का निवारण करने हेतु सभी चिकित्सा प्रणालियों को एक मंच पर लाने की जरूरत है। उनका कहना था कि हालांकि मेडिकल पाठयक्रमों में व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं किन्तु रोगियों को संपूर्ण चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आयुर्वेद, योग, युनानी और होम्योपैथी को साथ लेकर चलना होगा। नेशनल इंस्टिट्यूट हैल्थ एंड फैमली वेलफेयर, नई दिल्ली के डॉ. देवकी नंदन का कहना था कि मन के अंदर जो शत्रु हैं उस पर काबू करना है . उसको प्रार्थना करें कि हम सकारत्मक सोच से आगे बढें , आरोग्य की ओर बढें . इस ओर गुणात्मक शोध की जरुरत पर उन्होंने बल दिया . कुपोषण, संक्रमण, प्रदूषण और उन्मुक्त जीवन शैली से सामाजिक विकास में अवरोध उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप स्वस्थ जनजीवन के लिए चिकित्सा दिए जाने के क्षेत्र में जटिल समस्याएं आती हैं। उन्होंने रोगों के निदान के लिए दवाओं से अधिक जीवन शैली में परिवर्तन लाने, संतुलित आहार लेने, व्यायाम करने, स्वच्छता द्वारा संक्रामक रोगों की रोकथाम करने और प्रदूषण रहित जीवन को अपनाने पर जोर दिया। सुभारती विश्वविद्यालय मेडिकल कॉलिज के प्राचार्य डॉ. ए .के. अस्थाना ने कहा कि आयुर्वेद संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है जिसमें मन-मस्तिष्क और आत्मा के संबंधों पर बल दिया गया है ।
सुभारती इंस्टीट्यूशन की संस्थापक एवं मेडिसिन की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. मुक्ति भटनागर ने उद्घाटन समारोह में शिरकत करते हुए कहा कि मेरे जैसे मेडिसिन के अध्येता के लिए यह सुकूनदायक है कि पारंपरिक और वैकल्पिक चिकित्सा विज्ञान से जुड़े प्रख्यात विद्वानों के चिकित्सकीय हस्तक्ष्ेाप वाले विचारों को सुनने को मिल रहा है । यह सही है परस्पर अंतर्संवाद से चिकित्सा क्षेत्र में उन्नति होगी ।
पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार के शोध निर्देशक डॉ. शेरली टेलिस का कहना था कि योग भारत की परम्परा में है। वैज्ञानिक रूप से हुए शोध कार्यों से स्पष्ट हुआ है कि योग का अपना विशेष महत्व है। इसके द्वारा सरल और जटिल रोगों को पूरी तरह से मिटाया जा सकता है। योग के प्रति सामाजिक जागरूकता और इसके प्रामाणिक सिद्धांतों को वर्णित करते हुए उनका मानना था कि प्रचलित चिकित्सा व्यवस्था में योग को शामिल किया जाना चाहिए।
पतंजलि योगपीठ के डॉ. नगेन्द्र नीरज ने कहा कि योग और आयुष द्वारा रोगों के निदान करने पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सहमति की मोहर लग चुकी है। योगासन शरीर को स्वस्थ, लचीला, निरोग और चुस्त-दुरुस्त रखने वाली वैज्ञानिक पद्धति है। जिसका हितकारी प्रभाव शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। कांफे्रंस के अध्यक्ष प्रो.डॉ. राहुल बंसल ने आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व और उपयोगिता को सविस्तार रेखांकित करते हुए कहा कि हमारा शरीर मन, मस्तिष्क और आत्मा के सामजंस्य और शुद्धि के सिद्धान्त पर आधारित है। योग विद्या सकारात्मक सोच और आरोग्य जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। आयुर्वेद ज्ञान का महासागर है जिसमें दैविक, भौतिक और अध्यात्मिक विषयों से सम्बंधित मानव जीवन के अनेक पहलुओं पर दार्शनिक, सैद्धान्तिक, नैतिक और पूर्ण स्वास्थ्य दिए जाने का विवरण है।
कांफ्रेंस के विभिन्न वैज्ञानिक सत्रों में आयुर्वेद एवं पब्लिक हैल्थ विषय पर विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए।
के.जी.एम.यू. लखनऊ के प्रो. डॉ. वी.के. श्रीवास्तव, इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद एंड इंटिग्रेटेड मेडिसिन के स्वास्थ्य निदेशक डॉ. जी.सी. गंगाधर, आयुर्वेद कॉलिज ऑफ हाडिया, इलाहाबाद के प्राचार्य डॉ. जी सी तोमर, के.एच.एच.सी. नई दिल्ली की डॉ. कटोच ने आयुर्वेद की उपयोगिता को विस्तार से बताया। विशेषज्ञों ने गंभीर रोगों के निदान के लिए आयुर्वेद अपनाने की अपील की। देहरादून की प्रो. डॉ. सुरेखा किशोर, सी.सी. आर.वाई.एन. नई दिल्ली के उपनिदेशक डॉ. राजीव रस्तोगी, शोध अधिकारी डॉ. एच. एस. वेदराज, डॉ. वी.पी. वेकेटेश्वर राव ने जन-स्वास्थ्य के लिए नैचरोपैथी के सकारात्मक प्रभाव पर अपने विचार प्रस्तुत किए। वक्ताओं का कहना था कि आयुष की भूमिका को जनस्वास्थ्य से जोडऩे और रोगों को मिटाने में नैचरोपैथी का महत्व है।
इनके अतिरिक्त अन्य अनेक महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी विशेषज्ञों ने अपनी राय दी। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हैल्थ एंड फैमली वेलफेयर, नई दिल्ली की प्रो. डॉ. मधुलेखा भट्टाचार्य, मौलाना आजाद मेडिकल कालिज, नई दिल्ली की डॉ. एस. अनुराधा, लाला लाजपत राय मेडिकल कॅालिज, मेरठ के डॉ. हरवंश चोपड़ा ने एच.आई.वी. एड्स पर अपना व्याख्यान दिया। मुजफ्फरनगर मेडिकल कॉलिज के प्रो. डॉ. जी.वी.सिंह, एम.बी.आई. किट चेन्नई के निदेशक डॉ. डी. चन्द्रशेखर, एम्स नई दिल्ली के डॉ. उमेश कपिल ने कुपोषण की कमी के कारणों एवं निवारणों पर प्रकाश डाला। कॉलिज मैनेजमेंट हैल्थ ऑफ अरबन के निदेशक डॉ. सुब्रत माडल ने शहरी स्वास्थ्य पर विचार रखे तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ. अरविंद माथुर ने प्रसव के दौरान होने वाली मौतों के कारणों एवं उससे बचाव पर व्यापक चर्चा की। कांफें्रस के सचिव डॉ .पवन पाराशर का कहना था कि पर्यावरण और स्वास्थ्य का परस्पर संबंध है। दूषित पर्यावरण का स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। डॉ. भोलानाथ द्वारा आयोजित शोध-पत्र प्रस्तुति सत्र में डॉ. राहुल बंसल, डॉ. भावना पंत के निर्देशन में डॉ. कपिल गोयल, डॉ. अंकुर श्रीवास्तव, डॉ. पारूल शर्मा, डॉ. रंजिता, डॉ. अनुराधा, डॉ. सरताज अहमद(अध्येता मेडिकल सोसियोलोजी), डॉ. रश्मि, डॉ. धीरज, डॉ. मोनिका, डॉ. अनुज, डॉ. सौरभ, डॉ. गगन, डॉ. गुरमीत, डॉ. प्राची, डॉ. सुमोजित सहित देश के कई राज्यों के चिकित्सकों व परास्नातक छात्र-छात्राओं ने ओरल शोध व पोस्टर शोध-पत्र प्रस्तुतीकरण के माध्यम से स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर अपने शोध प्रस्तुत किए।
अलीगढ़ की प्रो. डॉ. जुल्फिया खान के कर - कमलों द्वारा स्मारिका का विमोचन किया गया। डॉ. मुक्ति भटनागर और कुलपति (लेफ्टिनेंट जनरल) डॉ. बी.एस. राठौर ने डॉ. अंकुर श्रीवास्तव व डॉ. भास्कर द्वारा तैयार की गई योग पर आधारित सी.डी. भी लांच की। कार्यक्रम की समाप्ति पर निदेशक जनरल चिकित्सा शिक्षा प्रो. सोदान सिंह ने कहा कि भारत में योग और आयुर्वेद का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। तमाम वैज्ञानिक शोधों और प्रामाणिक सिद्धान्तों के आधार पर आयुष के महत्व को स्वीकार किया जाने लगा है। इसमें योग और आयुर्वेद सबसे मजबूत पैथी के रूप में उभरा है। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी व अन्य चिकित्सा संस्थानों से सहयोग मिल रहा है। सुभारती मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. ए.के अस्थाना ने कान्फ्रेंस में महत्वपूर्ण भागीदारी करते हुए इस तरह के विमर्श की जरूरतों पर बल दिया एवं इसके लिए हर संभव कोशिश को प्रोत्साहित किया।
देश भर से जुटे सभी विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञों, विद्वानों ने योग-आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के सभी महत्वपूर्ण तथ्यों पर गहन विचार विमर्श के बाद एक मत हुए कि रोगों के निदान के लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति में योग-आयुर्वेद और नैचरोपैथी का समावेश आज की जरूरत है। बेहतर होगा की परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों को आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में सामंजस्य बनाकर सरल व जटिल रोगों की चुनौतियों से निपटा जाएं।


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