गुरुवार, 7 अगस्त 2008

दण्डी स्वामी विमला नन्द सरस्वती

दण्डी स्वामी विमला नन्द सरस्वती पिछले दिनों नही रहे । ९ जुलाई को वाराणसी में उनका निधन हो गया । स्वामीजी एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी और भोजपुरी साहित्यकार थे । वे शंकर सम्प्रदाय के संत थे ।

2 टिप्‍पणियां:

डा ’मणि ने कहा…

क्या हाल हैं जी


हिन्दी ब्लॉग्स के नये साथियों मे आपका बहुत स्वागत है
पहले तो एक सशक्त रचना के लिए आपको बहुत बधाई और फिर
चलिए अपने व ब्लॉग के परिचय के लिए कुछ पंक्तियाँ रख रहा हूँ देखिएगा

मुक्तक .......

हमारी कोशिशें हैं इस, अंधेरे को मिटाने की
हमारी कोशिशें हैं इस, धरा को जगमगाने की
हमारी आँख ने काफी, बड़ा सा ख्वाब देखा है
हमारी कोशिशें हैं इक, नया सूरज उगाने की .

और

कविता



मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

यानि
वन का वृक्ष
खेत की मेढ़
नदी की लहर
दूर का गीत , व्यतीत
वर्तमान में उपस्थित

भविष्य में
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिये

तेज गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कडाके की सर्दी
खून की लाली
दूब का हरापन
फूल की जर्दी

मैं जो हूँ ,
मुझे वही रहना चाहिये
मुझे अपना होना
ठीक ठीक सहना चाहिए

तपना चाहिए
अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिए
बीज हूँ
तो गड़ना चाहिए
फूल बनने के लिए

मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..



आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा मे
डॉ.उदय 'मणि'
हिन्दी की उत्कृष्ट कविताओं व ग़ज़लों के लिए देखें
http://mainsamayhun.blogspot.com

शोभा ने कहा…

मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..
बहुत ही सुन्दर लिखा है। बहुत-बहुत स्वागत है आपका।