गुरुवार, 7 अगस्त 2008

देश को कौन बचा सकता है ?

हमारे देश की सर्वोच्च अदालत ने लगभग बेचारगी और करुनासिक्त आवाज में खीझते हुए कहा है कि इस देश को भगवान भी नही बचा सकता । इस निराशा और बेचारगी से सिक्त कारुणिक विडम्बना ने हमारी व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है । जी हाँ ! न्याय का सर्वोच्च मन्दिर भी लाचार हो गया है । लेकिन हमारे गाँव जवार वाले इश्वर के भरोसे ही चल रहे हैं क्योंकि उन्हें नष्ट करने की एक भी कोशिश छोड़ी नही गई अब तक । सच में अगर इश्वर नाम की परिकल्पना नही होती तो 'असंख्यक इत्यदिजनो का होता ? उनका जीवन और भी बोझ बन जाता । जब व्यवस्था पंगु हो जाती है , शोषण बढ़ जाता है जीवन में सहजता ख़त्म होती जाती है अपने आगे बढ़ने की होड में लोग दूसरों को कुचलने से भी परहेज नही रखते हो तो इश्वर नामक मनोवैज्ञानिक टनिक की जरूरते बढ़ती जाती है । हालाँकि नए नए भगवानो ने अकूत सम्पदा और सत्तावादी संपर्कों से आम लोगों के भगवान पर बढ़त बना लिया है। वे सत्तासंस्कृति के दैवीय रक्षा कवच का काम करते हैं। उनकी संवेदना अलग अलग पार्टियों और नेताओं में बटी हुए है।

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