वह भी कोई देश है महाराज: अनिल यादव
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बुधवार, 2 सितंबर 2009
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
जसवंत के जीना
बीजेपी के सीनियर नेता जसवंत 'जीना ' पर लिखकर खूब चर्चित लेखक हो गए । एक ऐसा लेखक साबित हुए जिसकी किताब के कारण घर वाले उसको निकल बहार कर दिए --निर्ममता की हद तक ! पता नही उनके घर वाले किताब पढ़े भी की नही? राजनाथ वगैरह की ऐसी प्रतिभा और सरोकार भी नही रह कभी की लोकार्पण के ठीक एक दो दिन बाद पुरी किताब पढ़ लिए हों। बीजेपी में किताबों के लिए चर्चित और कुख्यात हैं --अरुण शौरी वे भी तो संदिग्ध हैं ,ऐसे में अडवानी और राजनाथ को किताब के बारे में कौन बताया होगा?
जसवंत वाले मसले पर अडवानी की क्या राय रही यह पता नही चल पाया। क्योकि वे जब से उदार और प्रोग्रेसिव हुए हैं तब से बीजेपी उनके हाथ से निकल चुकी है और संघ की बदौलत राजनाथ जैसे जूनियर उनके बराबरी में चल रहे हैं।
जसवंत जी को बहुत बहुत बधाई किताब के लिए नही (क्योकि मैंने पढ़ी नही ) इसलिए की बहुत कम लेखक इतने भाग्यशाली होते हैं की उसके लिखे को बैन कर दिया जाय। आज फिल्मकार क्या क्या जतन naही करते अपने फिल्मों को विवाद में घसीटे जाने के लिए।
भइया ! बीजेपी और संघ को तसलीमा और सलमान रुसदी के मसले पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की याद aane lagati hai . dohra charitra ,vichardhra ,suvidhabhgi -suvidhajivi stand sabhi daloan or netaoan ki niyati ban chuki hai. Loktanra amar rahe!
जसवंत वाले मसले पर अडवानी की क्या राय रही यह पता नही चल पाया। क्योकि वे जब से उदार और प्रोग्रेसिव हुए हैं तब से बीजेपी उनके हाथ से निकल चुकी है और संघ की बदौलत राजनाथ जैसे जूनियर उनके बराबरी में चल रहे हैं।
जसवंत जी को बहुत बहुत बधाई किताब के लिए नही (क्योकि मैंने पढ़ी नही ) इसलिए की बहुत कम लेखक इतने भाग्यशाली होते हैं की उसके लिखे को बैन कर दिया जाय। आज फिल्मकार क्या क्या जतन naही करते अपने फिल्मों को विवाद में घसीटे जाने के लिए।
भइया ! बीजेपी और संघ को तसलीमा और सलमान रुसदी के मसले पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की याद aane lagati hai . dohra charitra ,vichardhra ,suvidhabhgi -suvidhajivi stand sabhi daloan or netaoan ki niyati ban chuki hai. Loktanra amar rahe!
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
ओबामा की जीत के मायने
अमेरिका ने इतिहास रचा । बराक हुसैन ओबामा ने भी । ४७ वर्षीय आकर्षक प्रतिभाशाली और नेतृत्व क्षमता रखने वाले ओबामा की शानदार जीत ने उस अमेरिका का चेहरा बदला है जिसे लंबे समय तक रंगभेद - नस्लवाद के लिए जाना जाता रहा । दुनिया के सबसे शक्तिशाली सत्ता -केन्द्र व्हाइट हाउस में २० जनवरी को जब ओबामा दाखिल होंगे उसको लेकर अब्राहम लिंकन , मार्टिन लूथर किंग ही नहीं अपने बापू भी उतने ही गदगद होंगे ! ओबामा भी अपने बापू को प्रेरक मानते हैं।
ओबामा को लेकर पुरी dunia में खासकर अफ्रीकी --एशियाई समाज -देश के लोगों me शुरू से ही विशेष रूचि रही or एक तरह से shubhkamnayein भी की वे ही चुने जायें । ओबामा का ब्लैक होना or व्हाइट का प्रथम नागरिक बनाना ameriki लोकतंत्र or जनता की भी जीत है। मीडिया के सभी माध्यमों me ओबामा ने जबरदस्त coverage पाया। मीडिया ने ओबामा के स्टारडम उनके प्रति जनता के सभी वर्गों me आकर्षण को विशेष रेखांकित किया।
क्या व्हाइट हाउस में ब्लैक ओबामा जब दाखिल होंगे तो अमेरिका बदल जाएगा । क्या उसकी 'दरोगा' संस्कृति (वर्चस्व) me एकाएक बदलाव ओ जाएगा ! अगर पुरी dunia इस रूप में ओबामा का स्वागत करेंगी तो शायद उसे निराशा ही मिलेगी । ओबामा की जीत में उनके स्टारडम से कही ज्यादा बुश की नीतिया , उनके शासन काल का योगदान है। मतलब की सत्ताविरोधी लहर । जिस तरह बुश अपनी युद्ध -नीतियों से जन -धन की हानि कर बैठे वह दिनोदिन उनकी अलोकप्रियता बढ़ा रही थी। एक ameriki कालमनिस्ट ने लिखा है की ' dunia ओबामा की जीत इसलिए चाहती है की वे ब्लैक हैं , पर ameriki उनकी jeet isliye chahte hain ki we republican नही'। इसका मतलब तो यही हुआ की ओबामा की जीत के उत्सव में बुश महाशय (रिपब्लिकन) की कई मोर्चें पर असफलता - अलोकप्रियता का भी योगदान है। ओबामा की वक्तृता और उनकी स्टारडम ने वहा के सभी वर्गों - वर्णों के लोगो को बेहद प्रभावित किया। अमरीकी युवा वर्ग में वे विशेष लोकप्रिय हैं । हिलेरी क्लिंटन से पार्टी लेबल पर जब वे दौड़ में आगे निकले तभी से उनका जलवा रहा । यदि वोट प्रतिशत के लिहाज़ से देखा जाए तो ओबामा के 'अश्वेत ' कितने हैं! इसलिए कोरी भावुकता से ओबामा के जीत को नही देखा जाना चाहिए। ओबामा ने जीत के बाद कहा की उनकी जीत उन लोगों के संदेहों का जवाब है जिनके मन में अमेरिकी जनता की समझ और सोच को लेकर हमेशा संदेह रहा है।
बुश महोदय ने अपनी शुभकामना में कहा की '' आप अमरीका को बुलंदी पर ले जाने के लिए निकल चुके हैं। ''
ओबामा को अभी अपनी पारी की शुरुआत करनी है । इसलिए एशियाई , अफ्रीकी और बाकी दुनिया का यह उम्मीद करना की ओबामा के सत्तासीन होते ही अमेरिका पुरी तरह 'उदार' हो जाएगा, भावुकता और भ्रम ही है ! अमेरिका की स्थापित परम्परावादी वर्चस्व की संस्कृति कम होने की रणनीति थोडी ही बदलनी है।
इसलिए ओबामा की जीत के मूल्यांकन में सावधानी बरतने की जरूरत है। मार्टिन लूथर किंग और लिंकन , कैनेडी के सपने के आलोक में ही यह मूल्यांकन होना चाहिए। अगर आप बहुत ब्लैक --ब्लैक करके ओबामा-ओबामा करेंगे तो यह भी एक तरह का 'नस्लवाद' ही होगा।
ओबामा को लेकर पुरी dunia में खासकर अफ्रीकी --एशियाई समाज -देश के लोगों me शुरू से ही विशेष रूचि रही or एक तरह से shubhkamnayein भी की वे ही चुने जायें । ओबामा का ब्लैक होना or व्हाइट का प्रथम नागरिक बनाना ameriki लोकतंत्र or जनता की भी जीत है। मीडिया के सभी माध्यमों me ओबामा ने जबरदस्त coverage पाया। मीडिया ने ओबामा के स्टारडम उनके प्रति जनता के सभी वर्गों me आकर्षण को विशेष रेखांकित किया।
क्या व्हाइट हाउस में ब्लैक ओबामा जब दाखिल होंगे तो अमेरिका बदल जाएगा । क्या उसकी 'दरोगा' संस्कृति (वर्चस्व) me एकाएक बदलाव ओ जाएगा ! अगर पुरी dunia इस रूप में ओबामा का स्वागत करेंगी तो शायद उसे निराशा ही मिलेगी । ओबामा की जीत में उनके स्टारडम से कही ज्यादा बुश की नीतिया , उनके शासन काल का योगदान है। मतलब की सत्ताविरोधी लहर । जिस तरह बुश अपनी युद्ध -नीतियों से जन -धन की हानि कर बैठे वह दिनोदिन उनकी अलोकप्रियता बढ़ा रही थी। एक ameriki कालमनिस्ट ने लिखा है की ' dunia ओबामा की जीत इसलिए चाहती है की वे ब्लैक हैं , पर ameriki उनकी jeet isliye chahte hain ki we republican नही'। इसका मतलब तो यही हुआ की ओबामा की जीत के उत्सव में बुश महाशय (रिपब्लिकन) की कई मोर्चें पर असफलता - अलोकप्रियता का भी योगदान है। ओबामा की वक्तृता और उनकी स्टारडम ने वहा के सभी वर्गों - वर्णों के लोगो को बेहद प्रभावित किया। अमरीकी युवा वर्ग में वे विशेष लोकप्रिय हैं । हिलेरी क्लिंटन से पार्टी लेबल पर जब वे दौड़ में आगे निकले तभी से उनका जलवा रहा । यदि वोट प्रतिशत के लिहाज़ से देखा जाए तो ओबामा के 'अश्वेत ' कितने हैं! इसलिए कोरी भावुकता से ओबामा के जीत को नही देखा जाना चाहिए। ओबामा ने जीत के बाद कहा की उनकी जीत उन लोगों के संदेहों का जवाब है जिनके मन में अमेरिकी जनता की समझ और सोच को लेकर हमेशा संदेह रहा है।
बुश महोदय ने अपनी शुभकामना में कहा की '' आप अमरीका को बुलंदी पर ले जाने के लिए निकल चुके हैं। ''
ओबामा को अभी अपनी पारी की शुरुआत करनी है । इसलिए एशियाई , अफ्रीकी और बाकी दुनिया का यह उम्मीद करना की ओबामा के सत्तासीन होते ही अमेरिका पुरी तरह 'उदार' हो जाएगा, भावुकता और भ्रम ही है ! अमेरिका की स्थापित परम्परावादी वर्चस्व की संस्कृति कम होने की रणनीति थोडी ही बदलनी है।
इसलिए ओबामा की जीत के मूल्यांकन में सावधानी बरतने की जरूरत है। मार्टिन लूथर किंग और लिंकन , कैनेडी के सपने के आलोक में ही यह मूल्यांकन होना चाहिए। अगर आप बहुत ब्लैक --ब्लैक करके ओबामा-ओबामा करेंगे तो यह भी एक तरह का 'नस्लवाद' ही होगा।
बुधवार, 24 सितंबर 2008
प्रभा खेतान की अनुपस्थिति का अर्थ
प्रभा खेतान नहीं रही , इस पर सहसा विश्वाश नहीं होता। वे हमारी ऎसी ही जरुरत बन गयी थीं। उनका अचानक यूँ चले जाना बेहद तकलीफदेह है । स्त्री विमर्श को अपनी मेधा और वैचारिक ऊष्मा से समृद्ध करने वाली प्रभा सही मायने में हिन्दी की साइमन दा बौया थीं । उनका लिखना जीवन से अलग नहीं था।
यह कहना नाकाफी है कि हम शोक संतप्त हैं । स्त्री लेखन ही नहीं समूची हिन्दी की जन संपृक्त धारा की क्षति है उनकी अनुपस्थिति ।
फिर डिटेल में कभी और ......
रविवार, 7 सितंबर 2008
आपदा और हमारा तंत्र
बिहार में हरेक साल बाढ़ कहर बरपाता रहा है । राहत कार्य और घोटाले साथ साथ चलते रहे हैं। हमारे जैसे अनेकों इत्यादिजनो के जेहन में कुछ न कर पाने की बेबसी के बीच सवाल उभरता रहता है की ये राहती हाथ
आपदा आने से पूर्व क्यों नहीं सक्रिय होकर इसे रोक लेते हैं! ऐसे में जबकि यह निश्चित किस्म की आपदा हो।
आख़िर इसकी जिमेवारी किसकी है। अगर सब कुछ भाग्य भरोसे ही हो , तो फिर यह विकास दर, परमाणु ,चंद्र विजय , और ये लाल गुलाबी सरकारी मुस्कराहटे किस लिए हैं । हजारों- लाखों लोगों के जीवन की सुरक्षा की जिमेवारी किसकी हैं। आप नेपाल , प्राकृतिक आपदा और नदी को कब तक कसूरवार ठहराते रहेंगे? ये आधुनिक तंत्र और आपके शक्तिशाली हाथ कब तक सिर्फ़ दिखाने भर का कम आएगा! अनुपम मिश्र ने बहुत सही लिखा है कि baadh 'athiti' नहीं hai. kisi ko to jimmewari leni hi hogi. ram bharose kab tak unlogo ko kosi ke hawale karte rahenge?
आपदा आने से पूर्व क्यों नहीं सक्रिय होकर इसे रोक लेते हैं! ऐसे में जबकि यह निश्चित किस्म की आपदा हो।
आख़िर इसकी जिमेवारी किसकी है। अगर सब कुछ भाग्य भरोसे ही हो , तो फिर यह विकास दर, परमाणु ,चंद्र विजय , और ये लाल गुलाबी सरकारी मुस्कराहटे किस लिए हैं । हजारों- लाखों लोगों के जीवन की सुरक्षा की जिमेवारी किसकी हैं। आप नेपाल , प्राकृतिक आपदा और नदी को कब तक कसूरवार ठहराते रहेंगे? ये आधुनिक तंत्र और आपके शक्तिशाली हाथ कब तक सिर्फ़ दिखाने भर का कम आएगा! अनुपम मिश्र ने बहुत सही लिखा है कि baadh 'athiti' नहीं hai. kisi ko to jimmewari leni hi hogi. ram bharose kab tak unlogo ko kosi ke hawale karte rahenge?
बुधवार, 3 सितंबर 2008
बिहार में जल प्रलय
बिहार में हर साल इन्ही दिनों जल प्रलय होता है। लोग तबाह होते रहते हैं , तबाही और राहत साथ साथ चलते रहते हैं । जिस तरीके से इस बार तबाही मची है वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली तबाही है । लोगों के दुःख को मीडिया के मार्फ़त महसूस किया जा सकता है । लाचारी और बेबसी को हम सिर्फ़ महसूस सकते हैं। जल प्रलय , भूकंप और सुनामी की गति को तो मापा जा सकता है। काश ! उन तबाहियों को भुगतने वाले लोगों के दर्द का कोई मापक यन्त्र होता !
हर तबाही के समय देश मदद के लिए एकजुट हो जाता है। इस बार की तबाही ने लगता है सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हो । सवाल है कि जो तबाही निश्चित हो क्या उसके लिए कोई पहले से ही उपाय नही किया जा सकता ? यह भूकंप जैसी अनिश्चित आपदा तो है नही ! यह मंजर हर साल कभी कम तो कभी ज्यादा घटित होता ही रहता है। क्या इसका स्थयी समाधान नही हो सकता ?
हर तबाही के समय देश मदद के लिए एकजुट हो जाता है। इस बार की तबाही ने लगता है सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हो । सवाल है कि जो तबाही निश्चित हो क्या उसके लिए कोई पहले से ही उपाय नही किया जा सकता ? यह भूकंप जैसी अनिश्चित आपदा तो है नही ! यह मंजर हर साल कभी कम तो कभी ज्यादा घटित होता ही रहता है। क्या इसका स्थयी समाधान नही हो सकता ?
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