गुरुवार, 21 जुलाई 2011

नसीरुद्दीन शाह -- अभिनय की कसौटी

नसीरुद्दीन शाह  (जन्म: २० जुलाई-१९५०) -एक ऐसा अभिनेता जिसकी रग-रग में अभिनय बसता हो। बहुमुखी प्रतिभा के धनी शाह ने अपनी भूमिकाओं से सिनेमा- संसार को कलात्मक विस्तार दिया। सृजन विस्तार । चाहे वे स्टेज एक्टर हों या फिल्मी एक्टर... उन्होंने विभिन्न चरित्रों में अभिनय के नए-नए शेड्स दिए। तीन दशकसे अधिक के अपने क़लातमक़ करियर में हर तरह के किरदार में वे खूब जमे । ‘स्पर्श’ और ‘मासूम’ में उनके परफॉरमेंस को कैसे भुलाया जा सकता है।


बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में जन्मे नसीर ने जहां राष्टरीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से थिएटर का प्रशिक्षण लिया, वहीं भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से सिनेमा के गुर सीखे।

मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल की फिल्म ‘निशान्त’, ‘मंथन’ और ‘भूमिका’ में नसीर ने अपने अभिनय द्वारा सहज ही ध्यान आकृष्ट किया। अपनी कलात्मकता को ऊंचाई दी। १९७० के दशक में समांतर सिनेमा आंदोलन के दौर में उनकी प्रतिभा को बड़ी सम्मानित पहचान मिली। साईं परांजपे के स्पर्श, सईद मिर्जा के अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, गोविंद निहलानी के ‘आक्रोश’ और केतन महता के ‘मिर्च मसाले’ में नसीरुद्दीन शाह के चरित्र ने हिंदी सिनेमा को अभिनय की उल्लेखनीय छटा दी।

इसके अतिरिक्त व्यवसायिक फिल्मों ‘कर्मा’, ‘जलवा’ और ‘त्रिदेव’ आदि में भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। मुख्य धारा की व्यवसायिक फिल्मों में हास्य से भिगी चारित्रिक और खल भूमिकाओं में भी वे अपने अभिनय को विस्तार और विविधता देते नजर आए। शाह ने हॉलीवुड में भी कुछ फिल्में की हैं। साथ ही मिर्जा गालिब और भारत एक खोज जैसे टीवी धारावाहिकों में भी काम किया है।

उन्हें सर्वश्रेष्टï अभिनय के लिए तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिले। १९८० में ‘आक्रोश’ १९८१ में ‘चक्र’ और १९८३ में ‘मासूम’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता बने। गौतम घोष के ‘पार’ में संजीदगीपूर्ण भावाभिनय के लिए उन्हें १९८४ वेनिस फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का वोल्पीकप मिला। इसी फिल्म पर वे १९८४ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में राष्टï्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता भी बने।

नसीर का मन आज भी थिएटर में ही रमता है। वे अभिनय की तलाश में आज भी जिज्ञासु बने हुए हैं। नसीर ने कभी भी अपने कलाकार से समझौता नहीं किया। अच्छे चरित्र और बेहतरीन पटकथा की उनकी तलाश जारी है। वही किरदार चुनते हैं, जो उनहें छूते हैं कोई भी ऐसी फिल्म नहीं करते, जिसमें मजा न आए। नसीर का मानना है िक़ जब भी उन्होंने कोई भी फिल्म बेमन से की है, वह लोगों न॓ भी पसंद नहीं क़ी है। सृजन सरोकारों के समय वे हमेशा गतिशील बने रहें। जीवन की गति के साथ। तुम जियो हजारों साल...। जीवेत् शरद: शतम ।



फिल्मोग्राफी—

१९७५ : निशान्त

१९७६ : मंथन, भूमिका

१९७६ : मंथन, भूमिका

१९७७ : गोघूलि

१९७८ : जुनून

१९७९ : सुनयना, स्पर्श

१९८० : आक्रोश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा

क्यों आता है, अंधेर नगरी, चक्र

१९८१ : सजा-ए-मौत, उमराव जान, आधारशिला

१९८२ : बेजुबान, बाजार, मासूम, स्वामी दादा

१९८३ : अद्र्ध सत्य, मंडी, वो सात दिन

१९८४ : पार्टी, पार

१९८५ : बहु की आवाज, गुलामी, मिर्च मसाला, त्रिकाल, खामोश

१९८६ : कर्मा, जलवा

१९८७ : इजाजत

१९८८ : जुल्म को जला दूंगा, हिरो हिरालाल

१९८९ : त्रिदेव, खोज

१९९० : चोर पे मोर

१९९१ : शिकारी, लिबास

१९९२ : विश्वात्मा, तहलका, चमत्कार

१९९३ : सर, कभी हां-कभी ना

१९९४ : मोहरा, द्रोहकाल

१९९५: नाजायज, टक्कर

१९९६ : चाहत, हिम्मत

१९९७ : लहू के दो रंग

१९९८ : सरफरोश

१९९९ : भोपाल एक्सप्रेस

२००० : गजगामिनी

२००१ : मोक्ष

१९७७ : गोघूलि

१९७८ : जुनून

१९७९ : सुनयना, स्पर्श

१९८० : आक्रोश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा

क्यों आता है, अंधेर नगरी, चक्र

१९८१ : सजा-ए-मौत, उमराव जान, आधारशिला

१९८२ : बेजुबान, बाजार, मासूम, स्वामी दादा

१९८३ : अद्र्ध सत्य, मंडी, वो सात दिन

१९८४ : पार्टी, पार

१९८५ : बहु की आवाज, गुलामी, मिर्च मसाला, त्रिकाल, खामोश

१९८६ : कर्मा, जलवा

१९८७ : इजाजत

१९८८ : जुल्म को जला दूंगा, हिरो हिरालाल

१९८९ : त्रिदेव, खोज

१९९० : चोर पे मोर

१९९१ : शिकारी, लिबास

१९९२ : विश्वात्मा, तहलका, चमत्कार

१९९३ : सर, कभी हां-कभी ना

१९९४ : मोहरा, द्रोहकाल

१९९५: नाजायज, टक्कर

१९९६ : चाहत, हिम्मत

१९९७ : लहू के दो रंग

१९९८ : सरफरोश

१९९९ : भोपाल एक्सप्रेस

२००० : गजगामिनी

२००१ : मोक्ष



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