मान लीजिए आप कोई उपन्यास या कहानी पढ़ रहे हों तो क्या सोचते हैं आप? पात्रों की व्यथा-कथा, उनकी हँसी-खुशी पढ़कर या फिल्मों-सीरियलों में देखकर-सुनकर आपको यही लगता होगा कि कहानी जीवन की तो है, लेकिन पता नहीं सच्ची है या झूठी! लेकिन यहां पात्र 'सजीव' हैं। ये 'सजीव' पात्र अपने ’लेखक’ का जन्मदिन मनाते हैं।
अपने लेखक की रचनाओं की आलोचना-प्रशंसा करते हैं। पात्रों के साथ-साथ ’सुपात्र’ (संत, असंत, घोंघावसंत) भी होते हैं जन्मदिन मनाने वालो में जिन्हें पता नहीं ’काशी का अस्सी’ में गुरु ने छुआ या छुआया क्यों नहीं? कई लेखक-पाठक, प्रशंसक पहली जनवरी को मुम्बई, दिल्ली, लखनऊ, पटना, इलाहाबाद और न जाने कहां-कहां से इस अनूठे जन्मदिन में शिरकत करने के लिए आते हैं। बताते हैं कि इस बार प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी, इन्दौर के मनोज ठक्कर, लखनऊ के वीके सिंह, युवा कथाकार शशिभूषण, लखीमपुर खीरी के देवेन्द्र पधारे थे। हमेशा की भांति इस बार भी चर्चित कथाकार काशीनाथ सिंह का उनके पात्रों, कुपात्रों, सुपात्रों आदि ने वाराणसी में धूमधाम से जन्मदिन मनाया।
’अपना मोर्चा,’ ’कहानी उपखान,’ ’काशी का अस्सी,’ ’घर का जोगी जोगड़ा,’ ’रेहन पर रग्घू’ आदि पुस्तकों के रचनाकार काशीनाथ सिंह अपने पात्रों के समक्ष अक्सर (कई बार इस मौके पर दिल्ली कोलकाता भी चल बसे हैं फिर भी उनका जन्मदिन मना। उनके रहने या न रहने से जन्मदिन पर कोई फर्क नहीं पड़ता) साल की पहली तारीख को जन्मदिन मनाने के लिए मौजूद रहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जन्मदिन किसी होटल, सेमिनार हॉल या रेस्टोरैंट में नहीं मनाया जाता बल्कि भीड़ भरी सड़क पर स्थित चाय की दुकान (धुरी बदलती रही है.....) में मनाया जाता रहा है। इस बार भी उसी उत्साह के साथ उनके जन्मदिन को पात्रों और जन समुदाय ने इंज्वॉय किया। जन्मदिन पार्टी के लिए वही परम्परागत चूड़ा-मटर, चाय-पान और ’प्रसाद’। (जिसे दुनिया वाले 'शायद’ भांग कहते हैं....)
जातक, पंचतंत्र और लोक प्रचलित कथा शैलियां जैसे उनके कहानीकार के खून में है। उनके पाठक उन रचनाओं को पढ़ते हुए उन्हें देखते-सुनते भी हैं। लेखन के जरिए इस रचनाकार ने पाठकों की नई जमात तैयार की है। उनका चर्चित और निंदित उपन्यास ’काशी का अस्सी’ जिन्दगी और जिन्दादिली से भरा एक अलग किस्म का उपन्यास है (संस्मरण, रिपोर्ताज, कहानी के रूप में अस्सी को पढ़े लोग यह भी कहते हैं कि आलोचकीय दबंगई के कारण इसे उपन्यास घोषित किया गया) जिसका देश-विदेश की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
उनकी कहानी ’पांडे कौन कुमति तोहे लागी’ का प्रसिद्ध बंगाली अभिनेत्री निर्देशक ऊषा गांगुली ने ’काशीनामा’ नाम से नाट्य रूपान्तरण किया है जिसका देश के अनेक भागों में मंचन हुआ है। इसी तरह ’कौन ठगवा नगरिया लुटल हो’ का भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों ने सफल नाट्य प्रस्तुति की है। अपने 73वें जन्मदिन पर काशीनाथ सिंह ने कहा कि सामान्य जनता व पाठकों के बीच से साहित्य गायब नहीं हुआ है, बशर्ते कि साहित्यकार जनता से जुड़ने का साहस रखें। ’अस्सी के डीह’ और ’विद्वान’ प्राचार्य डॉ. गया सिंह, प्रो. बलराज पांडेय, वाचस्पति, डॉ. सरोज यादव, डॉ. सुबेदार सिंह, नेता अशोक पांडेय आदि ने उपस्थित काशी को शुभ कामनाएं देते हुए अपने विचार व्यक्त किये।
-----01-01-2010 ( खबर और सूत्रों पर आधारित )
शनिवार, 27 नवंबर 2010
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