शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

ओबामा की जीत के मायने

अमेरिका ने इतिहास रचा । बराक हुसैन ओबामा ने भी । ४७ वर्षीय आकर्षक प्रतिभाशाली और नेतृत्व क्षमता रखने वाले ओबामा की शानदार जीत ने उस अमेरिका का चेहरा बदला है जिसे लंबे समय तक रंगभेद - नस्लवाद के लिए जाना जाता रहा । दुनिया के सबसे शक्तिशाली सत्ता -केन्द्र व्हाइट हाउस में २० जनवरी को जब ओबामा दाखिल होंगे उसको लेकर अब्राहम लिंकन , मार्टिन लूथर किंग ही नहीं अपने बापू भी उतने ही गदगद होंगे ! ओबामा भी अपने बापू को प्रेरक मानते हैं।
ओबामा को लेकर पुरी dunia में खासकर अफ्रीकी --एशियाई समाज -देश के लोगों me शुरू से ही विशेष रूचि रही or एक तरह से shubhkamnayein भी की वे ही चुने जायें । ओबामा का ब्लैक होना or व्हाइट का प्रथम नागरिक बनाना ameriki लोकतंत्र or जनता की भी जीत है। मीडिया के सभी माध्यमों me ओबामा ने जबरदस्त coverage पाया। मीडिया ने ओबामा के स्टारडम उनके प्रति जनता के सभी वर्गों me आकर्षण को विशेष रेखांकित किया।
क्या व्हाइट हाउस में ब्लैक ओबामा जब दाखिल होंगे तो अमेरिका बदल जाएगा । क्या उसकी 'दरोगा' संस्कृति (वर्चस्व) me एकाएक बदलाव ओ जाएगा ! अगर पुरी dunia इस रूप में ओबामा का स्वागत करेंगी तो शायद उसे निराशा ही मिलेगी । ओबामा की जीत में उनके स्टारडम से कही ज्यादा बुश की नीतिया , उनके शासन काल का योगदान है। मतलब की सत्ताविरोधी लहर । जिस तरह बुश अपनी युद्ध -नीतियों से जन -धन की हानि कर बैठे वह दिनोदिन उनकी अलोकप्रियता बढ़ा रही थी। एक ameriki कालमनिस्ट ने लिखा है की ' dunia ओबामा की जीत इसलिए चाहती है की वे ब्लैक हैं , पर ameriki उनकी jeet isliye chahte hain ki we republican नही'। इसका मतलब तो यही हुआ की ओबामा की जीत के उत्सव में बुश महाशय (रिपब्लिकन) की कई मोर्चें पर असफलता - अलोकप्रियता का भी योगदान है। ओबामा की वक्तृता और उनकी स्टारडम ने वहा के सभी वर्गों - वर्णों के लोगो को बेहद प्रभावित किया। अमरीकी युवा वर्ग में वे विशेष लोकप्रिय हैं । हिलेरी क्लिंटन से पार्टी लेबल पर जब वे दौड़ में आगे निकले तभी से उनका जलवा रहा । यदि वोट प्रतिशत के लिहाज़ से देखा जाए तो ओबामा के 'अश्वेत ' कितने हैं! इसलिए कोरी भावुकता से ओबामा के जीत को नही देखा जाना चाहिए। ओबामा ने जीत के बाद कहा की उनकी जीत उन लोगों के संदेहों का जवाब है जिनके मन में अमेरिकी जनता की समझ और सोच को लेकर हमेशा संदेह रहा है।
बुश महोदय ने अपनी शुभकामना में कहा की '' आप अमरीका को बुलंदी पर ले जाने के लिए निकल चुके हैं। ''
ओबामा को अभी अपनी पारी की शुरुआत करनी है । इसलिए एशियाई , अफ्रीकी और बाकी दुनिया का यह उम्मीद करना की ओबामा के सत्तासीन होते ही अमेरिका पुरी तरह 'उदार' हो जाएगा, भावुकता और भ्रम ही है ! अमेरिका की स्थापित परम्परावादी वर्चस्व की संस्कृति कम होने की रणनीति थोडी ही बदलनी है।
इसलिए ओबामा की जीत के मूल्यांकन में सावधानी बरतने की जरूरत है। मार्टिन लूथर किंग और लिंकन , कैनेडी के सपने के आलोक में ही यह मूल्यांकन होना चाहिए। अगर आप बहुत ब्लैक --ब्लैक करके ओबामा-ओबामा करेंगे तो यह भी एक तरह का 'नस्लवाद' ही होगा।

बुधवार, 24 सितंबर 2008

प्रभा खेतान की अनुपस्थिति का अर्थ

प्रभा खेतान नहीं रही , इस पर सहसा विश्वाश नहीं होता। वे हमारी ऎसी ही जरुरत बन गयी थीं। उनका अचानक यूँ चले जाना बेहद तकलीफदेह है । स्त्री विमर्श को अपनी मेधा और वैचारिक ऊष्मा से समृद्ध करने वाली प्रभा सही मायने में हिन्दी की साइमन दा बौया थीं । उनका लिखना जीवन से अलग नहीं था।

यह कहना नाकाफी है कि हम शोक संतप्त हैं । स्त्री लेखन ही नहीं समूची हिन्दी की जन संपृक्त धारा की क्षति है उनकी अनुपस्थिति ।

फिर डिटेल में कभी और ......

रविवार, 7 सितंबर 2008

आपदा और हमारा तंत्र

बिहार में हरेक साल बाढ़ कहर बरपाता रहा है । राहत कार्य और घोटाले साथ साथ चलते रहे हैं। हमारे जैसे अनेकों इत्यादिजनो के जेहन में कुछ न कर पाने की बेबसी के बीच सवाल उभरता रहता है की ये राहती हाथ
आपदा आने से पूर्व क्यों नहीं सक्रिय होकर इसे रोक लेते हैं! ऐसे में जबकि यह निश्चित किस्म की आपदा हो।
आख़िर इसकी जिमेवारी किसकी है। अगर सब कुछ भाग्य भरोसे ही हो , तो फिर यह विकास दर, परमाणु ,चंद्र विजय , और ये लाल गुलाबी सरकारी मुस्कराहटे किस लिए हैं । हजारों- लाखों लोगों के जीवन की सुरक्षा की जिमेवारी किसकी हैं। आप नेपाल , प्राकृतिक आपदा और नदी को कब तक कसूरवार ठहराते रहेंगे? ये आधुनिक तंत्र और आपके शक्तिशाली हाथ कब तक सिर्फ़ दिखाने भर का कम आएगा! अनुपम मिश्र ने बहुत सही लिखा है कि baadh 'athiti' नहीं hai. kisi ko to jimmewari leni hi hogi. ram bharose kab tak unlogo ko kosi ke hawale karte rahenge?

बुधवार, 3 सितंबर 2008

बिहार में जल प्रलय

बिहार में हर साल इन्ही दिनों जल प्रलय होता है। लोग तबाह होते रहते हैं , तबाही और राहत साथ साथ चलते रहते हैं । जिस तरीके से इस बार तबाही मची है वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली तबाही है । लोगों के दुःख को मीडिया के मार्फ़त महसूस किया जा सकता है । लाचारी और बेबसी को हम सिर्फ़ महसूस सकते हैं। जल प्रलय , भूकंप और सुनामी की गति को तो मापा जा सकता है। काश ! उन तबाहियों को भुगतने वाले लोगों के दर्द का कोई मापक यन्त्र होता !
हर तबाही के समय देश मदद के लिए एकजुट हो जाता है। इस बार की तबाही ने लगता है सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हो । सवाल है कि जो तबाही निश्चित हो क्या उसके लिए कोई पहले से ही उपाय नही किया जा सकता ? यह भूकंप जैसी अनिश्चित आपदा तो है नही ! यह मंजर हर साल कभी कम तो कभी ज्यादा घटित होता ही रहता है। क्या इसका स्थयी समाधान नही हो सकता ?

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

विमलानंद सरस्वती .......

विमलानान्दजी का जन्म १९२१ में बिहार के शाहाबाद जिले (अब बक्सर ) में १९५४ में हुआ था । विमलानंद बनने से पहले वे अवध विहारी सुमन थे । १९५४ में उन्होंने सन्यास लिया । स्वतंत्रता आन्दोलन से राजनीतिक सफर और संन्यासी -जीवन का उनके पास यादों का खजाना था । महापंडित राहुल संक्रितायन के , स्वामी सहजानंद सरस्वती के अनुयायी , महाकवि नागार्जुन के संगी -साथी विमलानान्दजी के जीवन एवं लेखन में राजनीति, धर्मं , दर्शन , इतिहास , साहित्य की कई परम्पराएँ सुरक्षित थी । सन १९३९ में कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले स्वामीजी ने सहजानंद सरस्वती के किसान आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की । १९४०-४१ में आरा , गया , भागलपुर में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए । १९४२ में उन्हें भूमिगत जीवन जीना पड़ा । इसी के साथ -साथ उनका अध्ययन लेखन भी चलता रहा ।
१९४६ में उन्होंने हिन्दी साप्ताहिक पत्र 'कृषक' का संपादन -प्रकाशन किया । राहुलजी एवं बाबा नागार्जुन के साथ मिलकर कुछ पुस्तकों का संपादन भी किया । देश के अनेक इलाकों में उन्होंने व्यापक भ्रमण किया है । उनकी स्मृतियों के संग्रहालय में देश के हर भाग का सांस्कृतिक भूगोल सुरक्षित था ।
उनके जीवन के बहुतेरे प्रसंगों में से इन छोटे विवरणों में एक संन्यासी के जीवन की गाथाएं विविधतापूर्ण है । उनके यहाँ समाज की अनिवार्य उपस्थिति है । समाज का सुख -दुःख और संघर्ष उनके जीवन -दर्शन का अभिन्न हिस्सा था । उनके लेखकीय अवदान को हम देखे तो पता चलता है की उन्होंने आचार्य शंकर के सन्यास मार्ग के पुनीत प्रवाह का कितना सामाजिक विनियोग किया है ।

शनिवार, 9 अगस्त 2008

विमलानंद सरस्वती के बारे में विस्तार से ........

स्वामी विमलानंद जी के रूप में अभी हाल तक वाराणसी के शिवाला घाट पर राजगुरु मठ में एक जीता जागता इतिहास सुरक्षित था । धर्मं और साहित्य - संस्कृति की संस्थानिक दीवारे जैसे जैसे भव्य होती जा रही है वैसे वैसे विमलानान्दजी जैसी सहज - आत्मीयता दुर्लभ होती जा रही है । वे बोली बानी में व्यवहार में बेहद सहज थे । बाकी कल .......

गुरुवार, 7 अगस्त 2008

दण्डी स्वामी विमला नन्द सरस्वती

दण्डी स्वामी विमला नन्द सरस्वती पिछले दिनों नही रहे । ९ जुलाई को वाराणसी में उनका निधन हो गया । स्वामीजी एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी और भोजपुरी साहित्यकार थे । वे शंकर सम्प्रदाय के संत थे ।

देश को कौन बचा सकता है ?

हमारे देश की सर्वोच्च अदालत ने लगभग बेचारगी और करुनासिक्त आवाज में खीझते हुए कहा है कि इस देश को भगवान भी नही बचा सकता । इस निराशा और बेचारगी से सिक्त कारुणिक विडम्बना ने हमारी व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है । जी हाँ ! न्याय का सर्वोच्च मन्दिर भी लाचार हो गया है । लेकिन हमारे गाँव जवार वाले इश्वर के भरोसे ही चल रहे हैं क्योंकि उन्हें नष्ट करने की एक भी कोशिश छोड़ी नही गई अब तक । सच में अगर इश्वर नाम की परिकल्पना नही होती तो 'असंख्यक इत्यदिजनो का होता ? उनका जीवन और भी बोझ बन जाता । जब व्यवस्था पंगु हो जाती है , शोषण बढ़ जाता है जीवन में सहजता ख़त्म होती जाती है अपने आगे बढ़ने की होड में लोग दूसरों को कुचलने से भी परहेज नही रखते हो तो इश्वर नामक मनोवैज्ञानिक टनिक की जरूरते बढ़ती जाती है । हालाँकि नए नए भगवानो ने अकूत सम्पदा और सत्तावादी संपर्कों से आम लोगों के भगवान पर बढ़त बना लिया है। वे सत्तासंस्कृति के दैवीय रक्षा कवच का काम करते हैं। उनकी संवेदना अलग अलग पार्टियों और नेताओं में बटी हुए है।

शनिवार, 2 अगस्त 2008

HAMARI jamin par aap sabhi ka swagat hai. YEH jamin unlogo ke nam hai jo jivan se jujhate hain or jujhate hua jo pate hain usme shram sankriti ki sugandh hoti hai......yeh unhi ke nam, unhi ke dwara......