बुधवार, 3 सितंबर 2008

बिहार में जल प्रलय

बिहार में हर साल इन्ही दिनों जल प्रलय होता है। लोग तबाह होते रहते हैं , तबाही और राहत साथ साथ चलते रहते हैं । जिस तरीके से इस बार तबाही मची है वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली तबाही है । लोगों के दुःख को मीडिया के मार्फ़त महसूस किया जा सकता है । लाचारी और बेबसी को हम सिर्फ़ महसूस सकते हैं। जल प्रलय , भूकंप और सुनामी की गति को तो मापा जा सकता है। काश ! उन तबाहियों को भुगतने वाले लोगों के दर्द का कोई मापक यन्त्र होता !
हर तबाही के समय देश मदद के लिए एकजुट हो जाता है। इस बार की तबाही ने लगता है सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हो । सवाल है कि जो तबाही निश्चित हो क्या उसके लिए कोई पहले से ही उपाय नही किया जा सकता ? यह भूकंप जैसी अनिश्चित आपदा तो है नही ! यह मंजर हर साल कभी कम तो कभी ज्यादा घटित होता ही रहता है। क्या इसका स्थयी समाधान नही हो सकता ?

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