यह उस नही ,उससे पहले वाली दीपावली की बात है (२००७) जब अर्थशास्त्रीय दृष्टि से लक्ष्मी मैया हमारे देश पर पुरी तरह से मेहरबान थीं । कृपा का आलम यह था कि शेयर बाज़ार और न जाने क्या क्या नित नै उंचायीयोँ को छू रहा था । भारतीय अर्थव्यवस्था कि विकास डर नौ फीसदी के पार चल रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार २४७ अरब डॉलर जमा हो गया था। इन आर्थिक अकनोँ के बरक्स बीती साल की दीवाली ने सबको रुवांसा कर दिया । पता नही जानकर बताते हैं कि अमेरिका में कोई आर्थिक सुनामी लहर आयी और उसमे पुरा विश्व समा गया। कोई बाज़ार होता है जिसे शेयर कहते हैं, वह धणाम हो गया । बैंकिंग जैसी कोई व्यवस्था होती है , जो शक और शोक के दायरे में आ गई । तब से अब तक लक्ष्मीजी और चंचल हो गई हैं। हलाकि बताने वाले ये३ह अस्वस्ति देते हैं कि हमारी परमपरा में शुरू से ही बचत की आदत रही है , सो हमारे यहाँ उस तरह से लक्ष्मी कभी तंग नही हुई , जैसा की बताया जा रहा है।
और अगर लक्ष्मी नाराज चल रही हैं तो यह कोई नै बात नही है। वे शुरू से ही एक बड़ी आबादी से नाराज ही रही है। अरसे से हम लक्ष्मी और सरस्वती के भक्त रहे हैं --लेकिन हामी दरिद्र और निरक्षर बने हुए हैं। मानव विकास सूचकांक में हम बंगला देश भी पीछे हैं। ऐसा क्यों है? माँ लक्ष्मी की उदारता और कृपा दृष्टि चंद लोगों पार ही क्यों रहती है। 'असंख्यक इत्यादि जनों ' की दरिद्रता दूर करने में वे कोई रूचि क्यों नही लेती। फोर्ब्स patrika ke उजाले पनों पार धनिकों की सूचि में भारतीयों की बढ़त से अघाने बस के लिए हैं असंख्यक लोग। क्या इस समृधि और उसी अनुपात में बढाती गरीबी के बिच कोई नाता है क्या? अरब पतियों और ख्राब्पतियोँ की बढाती लिस्ट से हमारे जन-जीवन पार क्या कुछ फर्क पड़ता है न! आर्थिक उदारीकरण और भुमंदालिकरण के स्वप्नील संसार में बुध -गाँधी-आंबेडकर -लोहिया के दरिद्र नारायण कहा हैं ? आनंद प्रधान जैसे जानकर बताते हैं की आज एक आम भारतीय और सबसे धनिक आदमी की आय के बीच ९० लाख गुना का अन्तर आ चुका है। यह अन्तर उसी देश में है जिस देश में कभी बापू ने परतंत्र भारत को आजाद कराने के दौर में वायसराय की सैलरी पार सवाल उथया था की एक आम भारतीय नागरिक की तुलना में उनकी आमदनी पाँच हजार गुना अधिक कैसे हो सकती है?
ऐसे वर्गों को चिह्न जा सकता है जो अमूर्त किस्म के उदम (जो कही दिखता ही नही.....) के बल पार बहुत कम समय में लक्षमी के बढ़िया वाले कृपा पात्र बने। काले धन , पाप की कमाई सामाजिक प्रतिष्ठा और जनस्वीकृति हासिल कर रहे हैं। माँ लक्षी को चंद लोगों ने कब्जा लिया है। भ्रस्ताचारियोँ , शोषकों को नय्कत्वा प्रदान किया जा रह है। मीडिया और mahanth सभी ghul मिल गए हैं। काले धन कोई muda नही है।
दीपावली के prakash पर्व को prakhyat chintak vidyaniwas जी 'sarvamangal की akanksha का पर्व' कहते थे वह कुछ khas के mangal का क्यों होता जा रह है। ये रोशनी , ये patakhe , ये jagmagate shopin malls , ये samanti gift , ये ujalepan , धन pradarsan ...जन sewakoan
की shararati muskan और दीपावली की shubhkamnyein ...mei वे कहा हैं jinke mehanati hathoan ये sundetr dunia rachi- basi है । माँ लक्ष्मी से हर bar की भांति इस bar भी nihora है की asankhyak इत्यादि joan की दरिद्रता khtma करने की pratharna को ansuni करने के bajay apane agende में rakhane की की कृपा karein , इस bar नही तो agali bar जितना जल्दी हो सके उनकी जीवन की दीपावली prakash से dipt हो , jinhone apani श्रम -sanskriti के बल par यह sunder dunia banayi है। दिए की bati की लौ सभी तक पहुँच सके , इसमे सभी की samarthya bhar कोशिश jarur होनी चाहिए तभी deewapali happy होने की sarthakta sidh होगी।
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