बुधवार, 24 सितंबर 2008

प्रभा खेतान की अनुपस्थिति का अर्थ

प्रभा खेतान नहीं रही , इस पर सहसा विश्वाश नहीं होता। वे हमारी ऎसी ही जरुरत बन गयी थीं। उनका अचानक यूँ चले जाना बेहद तकलीफदेह है । स्त्री विमर्श को अपनी मेधा और वैचारिक ऊष्मा से समृद्ध करने वाली प्रभा सही मायने में हिन्दी की साइमन दा बौया थीं । उनका लिखना जीवन से अलग नहीं था।

यह कहना नाकाफी है कि हम शोक संतप्त हैं । स्त्री लेखन ही नहीं समूची हिन्दी की जन संपृक्त धारा की क्षति है उनकी अनुपस्थिति ।

फिर डिटेल में कभी और ......

रविवार, 7 सितंबर 2008

आपदा और हमारा तंत्र

बिहार में हरेक साल बाढ़ कहर बरपाता रहा है । राहत कार्य और घोटाले साथ साथ चलते रहे हैं। हमारे जैसे अनेकों इत्यादिजनो के जेहन में कुछ न कर पाने की बेबसी के बीच सवाल उभरता रहता है की ये राहती हाथ
आपदा आने से पूर्व क्यों नहीं सक्रिय होकर इसे रोक लेते हैं! ऐसे में जबकि यह निश्चित किस्म की आपदा हो।
आख़िर इसकी जिमेवारी किसकी है। अगर सब कुछ भाग्य भरोसे ही हो , तो फिर यह विकास दर, परमाणु ,चंद्र विजय , और ये लाल गुलाबी सरकारी मुस्कराहटे किस लिए हैं । हजारों- लाखों लोगों के जीवन की सुरक्षा की जिमेवारी किसकी हैं। आप नेपाल , प्राकृतिक आपदा और नदी को कब तक कसूरवार ठहराते रहेंगे? ये आधुनिक तंत्र और आपके शक्तिशाली हाथ कब तक सिर्फ़ दिखाने भर का कम आएगा! अनुपम मिश्र ने बहुत सही लिखा है कि baadh 'athiti' नहीं hai. kisi ko to jimmewari leni hi hogi. ram bharose kab tak unlogo ko kosi ke hawale karte rahenge?

बुधवार, 3 सितंबर 2008

बिहार में जल प्रलय

बिहार में हर साल इन्ही दिनों जल प्रलय होता है। लोग तबाह होते रहते हैं , तबाही और राहत साथ साथ चलते रहते हैं । जिस तरीके से इस बार तबाही मची है वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली तबाही है । लोगों के दुःख को मीडिया के मार्फ़त महसूस किया जा सकता है । लाचारी और बेबसी को हम सिर्फ़ महसूस सकते हैं। जल प्रलय , भूकंप और सुनामी की गति को तो मापा जा सकता है। काश ! उन तबाहियों को भुगतने वाले लोगों के दर्द का कोई मापक यन्त्र होता !
हर तबाही के समय देश मदद के लिए एकजुट हो जाता है। इस बार की तबाही ने लगता है सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हो । सवाल है कि जो तबाही निश्चित हो क्या उसके लिए कोई पहले से ही उपाय नही किया जा सकता ? यह भूकंप जैसी अनिश्चित आपदा तो है नही ! यह मंजर हर साल कभी कम तो कभी ज्यादा घटित होता ही रहता है। क्या इसका स्थयी समाधान नही हो सकता ?